" alt="" aria-hidden="true" />
ग्वालियर किले पर बना तेली का मंदिर दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली का बेहतर उदाहरण है। इसका निर्माण 9वीं सदी ईस्वी में प्रतिहार राजा मिहिर भोज के शासनकाल में तेल के व्यापारियों द्वारा दिए गए धन से हुआ था। इसलिए इसका नाम तेली का मंदिर पड़ा। इसका उल्लेख मुख्यद्वार पर लगे शिलालेख पर भी मिलता है। किले पर बने स्मारकों में यह सबसे ऊंचा स्मारक है। इसकी ऊंचाई धरातल से 30 मीटर है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के सहायक पुरातत्वविद् शशिकांत राठौर ने बताया कि इस मंदिर की भवन योजना में गर्भगृह और अंतराल प्रमुख हैं। इसमें प्रवेश के लिए पूर्व दिशा में सीढ़ियां हैं। मंदिर की खास विशेषता इसकी गजपृष्ठाकार छत है, जो कि द्रविड़ शैली में निर्मित है। इस प्रकार के मंदिर उत्तर भारत में बहुत कम देखने को मिलते हैं। इस मंदिर में उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय वास्तुकला का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। मंदिर के पूर्वी भाग में दो मंडपिकाएं और प्रवेश द्वार 1881 में अंग्रेज आर्किटेक्ट द्वारा बनवाए गए थे।
जीर्णोद्धार पर खर्च हुए थे 7625 रुपए
अक्रमणकारियों द्वारा मंदिर की कई मूर्तियों को खंडित कर दिया गया था, लेकिन ब्रिटिश पीरियड में मेजर जेबी कीथ ने (1881 से 1883) इसका जीर्णोद्धार कराया था। इस पर 7 हजार 625 रुपए का खर्च आया था। इसके लिए 4 हजार की राशि सिंधिया स्टेट के तत्कालीन महाराजा ने दी थी। अंग्रेजों ने कॉफी शॉप के रूप में भी मंदिर के प्रांगण का उपयोग किया था। इसका उल्लेख मुख्य प्रवेश द्वार पर लगे शिलालेख में भी मिलता है।